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राजस्थान के रणबांक, अशोक गहलोत: जननेता से लेकर मुख्यमंत्री तक का सफर

मारवाड़ की धूप में पलीं आवाज, मिट्टी की सोंधी खुशबू और जनता के लिए समर्पण के जज्बे से सराबोर राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री, अशोक गहलोत, किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। जादूगर के बेटे से लेकर तीन बार मुख्यमंत्री की गरिमामयी कुर्सी तक पहुँचने का उनका सफर, राजनीति की पाठशाला में संघर्ष, चतुराई और जनसेवा का अनूठा मिश्रण है।

1951 में जोधपुर के साधारण परिवार में जन्मे अशोक गहलोत ने विज्ञान और कानून में स्नातक डिग्री हासिल करने के बाद अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। लेकिन उनकी प्रतिभा किसी किताब तक सिमटने वाली नहीं थी। 1977 में कांग्रेस पार्टी से जुड़कर उन्होंने अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत की। जनता से सीधा जुड़ाव, समस्याओं को समझने की गहरी पैठ और उनका समाधान निकालने की तत्परता ने उन्हें जननेता का दर्जा दिलाया।

1980 में पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए गहलोत ने केंद्र सरकार में भी अपने हुनर का लोहा मनवाया। कपड़ा मंत्री, पर्यटन एवं नागरिक उड्डयन मंत्री और खेल मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों को संभालते हुए उन्होंने विभिन्न विकास योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू किया गहलोत को 3 बार प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्‍यक्ष रहने का गौरव प्राप्‍त हुआ है।

 पहली बार गहलोत 34 वर्ष की युवा अवस्‍था में ही राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्‍यक्ष बन गये थे। इसके अलावा वर्ष 1982 में गहलोत राजस्‍थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी (इन्दिरा) के महासचिव  रहे। राजस्‍थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्‍यक्ष के रूप में उनका पहला कार्यकाल सितम्‍बर, 1985 से जून, 1989 की अवधि के बीच में रहा। 1 दिसम्‍बर, 1994 से जून, 1997 तक द्वितीय बार व जून, 1997 से 14 अप्रैल 1999 तक तृतीय बार वे पुन: राजस्‍थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्‍यक्ष पद पर रहे। वर्ष 1973 से 1979 की अवधि के बीच गहलोत राजस्‍थान NSUI के अध्‍यक्ष रहे और उन्‍होंने कांग्रेस पार्टी की इस यूथ विंग को मजबूती प्रदान की। गहलोत वर्ष 1979 से 1982 के बीच जोधपुर शहर की जिला कांग्रेस कमेटी के अध्‍यक्ष रहे।

1998 में राजस्थान की राजनीति में उन्होंने नया अध्याय लिखा। पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में चुने गए गहलोत ने 2003 तक जनकल्याणकारी योजनाओं पर जोर दिया।  "राजीव गांधी शहरी स्लम सुधार योजना" जैसे उनके प्रयासों ने गरीबों और वंचितों को राहत पहुंचाई। 2008 में वह दोबारा मुख्यमंत्री बने और उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाने की कोशिश की।

अशोक गहलोत की उपलब्धियों को आंकने के लिए उनकी उद्धृतियों को भी सुना जा सकता है। "राजनीति सिर्फ सत्ता में आने का खेल नहीं है, बल्कि जनता की सेवा का पवित्र कर्म है," ये शब्द उनके जनसेवा के जज्बे को बयां करते हैं। "विकास बिना शिक्षा के अधूरा है," उनके इस कथन ने राजस्थान में शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक सुधारों को जन्म दिया।

उनके कार्यकाल में हुए कुछ ऐतिहासिक उपलब्धियों में 2011 में "इंदिरा गांधी नहर परियोजना" का पूरा होना, सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट द्वारा 2018 में गरीबी कम करने में बेहतर प्रदर्शन के लिए सम्मान, ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली पहुँचाने में उल्लेखनीय कार्य और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए किए गए सफल प्रयास शामिल हैं।

हालांकि, उनके आलोचक भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाते हैं और कुछ विकास योजनाओं के क्रियान्वयन में देरी की ओर इशारा करते हैं। मगर, यह तथ्य भी मानना पड़ेगा कि उन्होंने राज्य की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाने और आधारभूत संरचना के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

2018 में तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद गहलोत को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। कोविड-19 महामारी के बाद आर्थिक सुस्ती और बेरोजगारी से निपटना उनकी प्राथमिकताओं में शामिल है। किसानों की समस्याओं का समाधान और सामाजिक न्याय का मुद्दा भी उनके एजेंडे में शीर्ष पर है।

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